दीया

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

करुण स्वर से

बोली मुन्नी

विनय भाव से जोडी हाथ

सड़क किनारे

छांव पेड़ के

बेचने लाई दीये साथ 

बाबूजी!ओ बाबूजी!

ले लो न दीया

नहीं फरेबी 

नहीं चाईना

बापू ने है गढा दीया

है सस्ते और प्रीत धुले

जगमग -जगमग 

खूब जले रंगों से

मैंने सजाया है

सबके मन को भाया है

मिट्टी का ये प्यारा दीया

बाबूजी! ले लो न दीया 

अम्मा की उम्मीद

बापू की कलाकारी है

सच बाबूजी

इसी से चलती

जिविका हमारी है

मिलजुल मनाओ 

दीपोत्सव

बस जलाओ मिट्टी का दीया

सुनो सुनो ओ बाबूजी।

हमारी निर्धनता भी

मिट जायेगी बस इतने 

उपकार से

मुन्नी भी मना लेगी

इस बार 

दीवाली प्यार से।

लता नायर,

सरगुजा-छतिसगढ