घर के चारों बच्चों में वह सबसे छोटी थी। अक्सर छोटा बच्चा कुछ अधिक ही लाड़ला होता है। लेकिन यह प्यार उसके हिस्से में ना के बराबर और भाईयों के हिस्से में कुछ ज्यादा ही था। कई बार भेदभाव भरा हुआ व्यवहार उसके दिमाग में तो आया लेकिन दिल नें मानने से साफ इन्कार कर दिया।कुछ चीजें लड़कियां जानती हैं,मानती भी हैं लेकिन जीवन में बहुत ही कम लड़कियां कहीं किसी को बताती हैं। बताती भी हैं तो दबी हुर्ई जबान से। जिसका अक्सर कोई फायदा भी नहीं होता और किसी पर इसका कोई प्रभाव भी नहीं पड़ता।
लड़कियों के हक में कानून लाख बन जायें। उससे क्या होता है। कम ही लड़कियां होती हैं जिन्हें उनके हिस्से का वाजिब सम्मान धन सहित बिना किसी उलझन के मिल जाता है। आजकल बहुत सारे परिवार ऐसे भी हैं जो कानून को जानते भी हैं और मानते भी हैं तथा घर की बेटियों को उनका हक सम्मान पूर्वक देते भी हैं।लेकिन आज हम एक स्त्री के जीवन की सत्यकथा लेकर हैं। जिसके बड़े भाई के विवाह के पश्चात् उसकी शादी की घर में कोई चर्चा ही नहीं होती थी।बड़ा भाई स्वयं की शादी के बाद अपनी पत्नी और बच्चों के बीच उलझ कर रह गया था। अभी तो उससे बड़ी एक बहन और भी थी एक भाई और भी था जब उन दो का ब्याह हो तब उसका नंबर लगेगा।इसी बीच बड़ी बहन चालीस पार कब कर गई किसी नें ध्यान ही नहीं दिया।
शायद उसकी आती हुई मोटी तनख्वाह नें घर के अन्य लोगों की आंखों पर पर्दा डाल दिया था। अब तो रिश्ते आना भी लगभग बंद हो गये थे। बड़ी मुश्किल से एक उम्र दराज कहीं से किसी से छूटा हुआ रिश्ता आया उसने भी कह दिया छोटी बेटी से कर सकते हैं। बड़ी से नहीं। छोटी भी अब कहां छोटी रही थी वह भी चौंतीस पार हो चुकी थी। मायके में सुबह से रात तक बिना थके बिना रुके सबका काम करने वाली आज विदा हो गई थी। अब कोई भी काम हो तो मायके वालों को बात-बात पर उसकी कमी का एहसास होता।घर में मां या पिता बीमार हों या हो घर की पुताई का काम हो उसे महिने दो महिने के लिये बुला लिया जाता और काम होने के बाद एक साड़ी देकर विदा कर दिया जाता।
मायका पक्ष कोई मौका नहीं छोड़ता चाहे वह भाभी का तीसरा बच्चा पैदा हो रहा हो अथवा दूसरे भाई की शादी में घर का काम हो। उसे फटाफट फोन कर दिया जाता। और वह ससुराल में मायके के प्रेम और स्नेह की झूठी तस्वीर पेश कर तुरंत मायके चली आती। अपनी उपयोगिता बार-बार सिद्ध करने और उपयोगिता तथा अपना हक बरकरार रखने के लिये।अब दोनों भाइयों के बच्चे भी बड़े हो गये। पिता द्वारा पास-पास बनाये गये दोंनों मकानों का पिता की मृत्यु के पश्चात दोनों भाइयों नें मिलकर एक-एक लेकर बटवारा कर लिया। मां के गहने और पिता का पैसा भी बांट लिया।और उसे कह दिया अपना हक अपनी ससुराल में मांगों।
वकील की और कोर्ट की फीस के साथ ही कोर्ट की लंबी तारीखें और कोर्ट के विलंबित निर्णय को वह अच्छी तरह जानती है।और आज वह यह सोचने पर मजबूर हो गई है कि वह शान से मोहल्ले में पड़ौसियों को जो रोब दिखाती थी की हमारे दो मकान हैं। तो आज वह दो मकान तो हैं पर वह मकान घर नहीं हैं जहां उसका हक और सम्मान हो। दोनों भाई अब कम ही बुलाते हैं और कोशिश करते हैं कि दूसरे भाई के यहां भी रहो । दो भाई हैं दो घर हैं लेकिन उसका घर यहां नहीं वहां है जहां से वह एक फोन पर भाग-भाग कर यहां चली आती थी।
जिस घर को उसने इतना महत्व दिया जहां उसने दिन रात अपना मन और श्रम अर्पित करा। वहां एक नौकर से अधिक उसकी कीमत नहीं थी।यह उसको बरसों के समर्पण के पश्चात् पता चला कि वह बरसों से अपनों ही द्वारा ठगी हुई औरत है। सभी महिलाओं के साथ तो ऐसा नहीं होता है। और जिनके साथ ऐसा होता है अक्सर फिल्म की कहानी भी उन्हीं पर बनती है।ठेले पर सब्जी या फल लेते समय तो हम तराजू के संतुलन को बहुत ध्यान से देखते परखते हैं। लेकिन जीवन में धन संपत्ती के आगे रिश्तों के संतुलन के महत्व को अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।
श्रीमती रमा निगम
वरिष्ठ साहित्यकार भोपाल म.प्र.