संदेशपूर्ण कुंडलिया

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

भागा सुख को थामने,दिया न सुख ने साथ।

कुछ भी तो पाया नहीं ,रिक्त रहा बस हाथ।।

रिक्त रहा बस हाथ,काल ने नित भरमाया।

सुख-लिप्सा में खोय,मनुज ने कुछ नहिं पाया।।

जब अंतिम संदेश,तभी निद्रा से जागा।

देखो अब है अंत,आज मैं सब तज भागा।।

दुख बस मन का भाव है,भाव करे बेचैन।

वरना सुख-दुख एक से,संतों के ये बैन।।

संतों के ये बैन,गहो दृढ़ता की राहें।

दुख हो सु:ख समान,सदा फैलाओ बाहें।।

मन हो यदि मजबूत,बनेगा हर दुख तब सुख।

सुख आएगा हाथ,परे हट जाए हर दुख।।

हाथ बढ़ाओ थाम लो,सुख बिखरा चहुँओर।

रात कटेगी,आएगा,लिए उजाला भोर।।

लिए उजाला भोर,ज़िंदगी मुस्काएगी।

मन में ले संतोष,वंदगी हर्षाएगी।।

काँटे देते साथ,फूल को दूर भगाओ।

दुख बन जाए सु:ख,ज़रा प्रिय हाथ बढ़ाओ।।

                  -प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे