आज फिर क्यो
कुछ उलझी हुई है रात
कुछ उलझी हुई है बात
कुछ गमगीन क्यो
हुआ है दिल बेहद
संगदिल क्यो हुआ है दिल
जख्म भर के जो
ढक गये थे सीने मे
उनमे कुछ जलन
हुआ है क्यो हम तो
खुशियां बाटते रहे
कुछ लुटे से आज
पडे है क्यू बहाकर
पसीने जो जूझते ही
रहते थे आज इस
मोड़ पर ही खड़े है
क्यो संग संग जो
दौडते थे दुनिया के
चुपचाप बुझी नजर
देखते है क्यो उनको
पाने की न थी कभी भी
ललक खुद को खोये
हुए खडे है क्यो
हर कदम फूल ही
बिखरे रहते थे
काटो पर आज नंगे
पाव खड़े है क्यो
वन्दना श्रीवास्तव जी,वरिष्ठ
जौनपुर- उत्तर प्रदेश