विश्राम काल

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

लालिमा अब जाने लगी,

 संध्या अब आने लगी।

 अंधकार पांव पसार रहा,

 गहन अंधेरा हो रहा है।

 देखो विश्राम काल आ रहा,

 थक गई है लोग देखो।

 भोर से  काम करें,

 लौट रहे हैं घर अपने।

 नई ऊर्जा के लिए,

 देखो विश्राम काल आ रहा।

 नभ में चंद्रमा छा रहा ,

 तारों की बारात है।

 कितनी सुहानी रात है,

 पशु पक्षी सब सो गए ।

 वन उपवन सब शांत हुए,

 अंघकार  में भी प्रकाश ।

 जुगनू घूमे यहां वहांँ,

 थका हुआ मानव होता।

 लौटे अपनी नीड को,

 बच्चों संग हास परिहास है करता।

 जिंदगी उम्मीद से भरता,

 परिवार से अपने हैं मिलता।

 थकान भूले पूरे दिन की,

 देखो रात्रि काल आ रहा ।

 रात को बाहों में सिमटे,

 उलझन अपनी सब भूले।

 अधूरे सपने साथ ले ,

 कोई  मीठी सौगात दे।

 देखो आ गया रात्रि काल,

 देखो आ गया विश्राम काल।

 आओ सोए रात भर 

 प्रात: उठे ऊर्जा से भर

 मंजिल को अपनी चलें 

 आओ रात में विश्राम करें।।

                 रचनाकार ✍️

                 मधु अरोरा