सन 2007 में मैंने अपनी पहली कविता मां और तीसरी कविता धरती लिखी थी।अमर उजाला में दोनों कविताएं एक साथ प्रकाशित हुईं थीं।लेकिन उसमें से कुछ अंश कम कर दिया था। उससे कुछ समय पहले ही मेरी मां की मृत्यु हुई थी।मुझे बहुत ज्यादा दुख था।हर समय मैं अपनी मां को ज्यादा महसूस करती थी। तभी अमर उजाला में एक मंच निकला और मैंने कविताएं डाक द्वारा भेज दीं।लेकिन मैं अपने नाम के साथ में अपनी माता का नाम जोड़कर कविताएं प्रकाशित कराना चाहती थी।क्योंकि उनके प्रति मेरी भावनाएं ऐसी थीं। क्योंकि माँ के भावनाओं के माध्यम से ही मेरे अंदर से शब्द कागज पर निकल कर आए।वैसे बचपन से कविताएं सुनने का शौक था और कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर थोड़ा बहुत लिखती थी।किसी और के लिए भी और अपने लिए भी । लेकिन मकसद साहित्य नहीं होता था।पाठक परिवार में मेरा जन्म हुआ। इस कारण से मैं अपने नाम के साथ में पाठक लगाती हूँ। लेकिन जब मेरी कविताएं पहली बार प्रकाशित हुई थीं। मैं अपने नाम के साथ में अपनी माता का नाम लिखना भूल गई थी।जबकि मैं चाहती यही थी कि मैं माँ का नाम साथ लिखूँ।फिर मैंने अमर उजाला कार्यालय में फोन किया और फोन करके कहा कि मेरे नाम के साथ में मेरी माँ का नाम लिखा जाए।लेकिन जिन्होंने फोन से बात की थी। वह शायद प्रकाशित करने वाले नहीं थे और जब प्रकाशित हुई तो मेरे नाम के साथ में मेरी मां का नाम नहीं आया।
उसके बाद में कुछ दिनों तक लिखती रही और फिर उसके बाद बीच में बहुत ही लम्बे समय तक नहीं लिखा। कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। पहली बार कविता प्रकाशित होने पर ऐसा कहीं नहीं लगा कि मैने कोई अच्छा कार्य किया है। हाँ लिखने के बाद स्वयं मन जरूर हल्का हो जाता।
कई वर्षों बाद फिर से मैंने लिखना शुरू किया।
अमर उजाला में मेरे पाठक पत्र भी प्रकाशित होते थे। ज़ब एंड्राइड मोबाइल चला रही थी लेकिन इतने लंबे अंतराल के बाद जब लिखना शुरू किया था,उससे पहले मैं कीपैड मोबाइल का ही प्रयोग किया करती थी। यहां तक कि घर पर एंड्राइड मोबाइल आने के बाद भी मैंने उसे वापस कर दिया। और कीपैड मोबाइल ही लिया था। सोशल मीडिया ठीक नहीं लगता था। क्योंकि उससे जुड़ी नहीं थीं। सोशल मीडिया से जुड़ने पर ही प्रकाशन भी शुरू हुआ। पढ़ने वाले पाठक भी मिले और रचनाकार भी।
कुछ दिनों तक पूनम पाठक नाम से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित होती रहीं।
अब फिर मेरे दिमाग में आया कि मैं अपने नाम के साथ कोई शब्द जोड़ूं।कुछ कारण यह भी रहा कि मुझसे कई बार लोग कहते थे कि हम सोशल मीडिया पर आपका नाम सर्च करते हैं तो कई इसी नाम से बहुत सारी प्रोफाइल पर खुलती हैं जो कि उसमें बहुत ही घटिया घटिया पोस्ट भी आती हैं। पर आपकी प्रोफाइल नहीं दिखती। मैंने यूट्यूब चैनल बनाया फिर उसी नाम से वह भी नहीं खुलता था।
क्योंकि उस नाम से बहुत सारे चैनल थे।और बहुत सारे चैनल सामने आ जाते थे।पर वह चैनल नहीं आता तो मैंने सोचा कि मैं अपने नाम के साथ में एक शब्द प्रयोग करूं।
वैसे बहुत से शब्द अच्छे लगते हैं।और वे साहित्य से जुड़े शब्द प्रतीत होते हैं।मैं उन में से कोई भी शब्द जोड़ना चाहती। लेकिन मैं कविताएं लिखती हूं तो मैं कुछ सोच कर लिखती हूं।लेकिन कई लोग इसका अर्थ कुछ और निकाल लेते हैं।इसी तरह मुझे लगा कि मैं कोई भी शब्द जो मुझे पसंद होते हैं उनमें से कोई शब्द अपने नाम के साथ जोड़ती हूँ तो उसका भी लोग कुछ मतलब निकालेंगे।
मैंने सोचा कि क्यों न मैं एक जगह का नाम अपने नाम के साथ में जोड़ूं। मेरा जिला बदायूं है। जिला बदायूं के गांव में मेरा जन्म हुआ है। मुझे लगा कि बदायूं जोड़ना ही मेरे लिए बेहतर रहेगा।
फिर मैंने अपनी कविताएं पूनम पाठक बदायूं नाम से प्रकाशित करना शुरू किया।सबसे पहले मेरी कविता जनवरी 2021 में युग जागरण में इस नाम से प्रकाशित हुई। प्रकाशित होने से पहले मैंने वहां फोन किया और वहां के संपादक जी से बात की तो मैंने कहा कि मैं अपनी कविताएँ पूनम पाठक की बजाय पूनम पाठक बदायूँ के नाम से प्रकाशित कराना चाहती हूं। मैंने उन्हें कारण बताया और बताने के बाद फिर उन्होंने हाँ कह दिया।
उसके बाद से मेरी कविताएं पूनम पाठक बदायूँ नाम से ही प्रकाशित होने लगीं।
शुरू में लिखी रचनाएँ बाद में प्रकाशित होनी शुरू हुईं क्यों दोबारा लिखना आरम्भ किया समय अनुसार वे प्रकाशित होती रहीं।
यदि ईश्वर ने चाहा तो मैं अपनी पुस्तक /पुस्तकें प्रकाशित कराऊंगी।
आने वाले समय में यदि मेरा गांव किसी अन्य जिले में भी चला जाता है। तब भी इसी नाम से लेखन और प्रकाशन होगा। बाकी सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है। उसकी मर्जी के बिना कुछ नहीं हो सकता।
पूनम पाठक बदायूँ