गृहस्थ जीवन

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

पति- पत्नी होते गाड़ी के दो पहिए से,

एक दूजे के बिना चले ना गृहस्थी।

आपसी तालमेल का नाम  गृहस्थी,

प्रेम -प्रीत से चले गृहस्थी।

इक कहे दूजा माने,

राहें गृहस्थी की आसान हो जाए ।

उतार-चढ़ाव भरी होती जिंदगी,

तालमेल बैठा चले गृहस्थी।

चादर उतनी फैलाओ तुम,

जितनी पॉकेट होए तुम्हारी।

देखभाल कर तुम चलो,

आना -जाना मिलना -मिलाना।

प्रेम प्यार ,सद्भाव ,जगाना,

इनसे बने चले गृहस्थी।

जो भी घर पर आए तुम्हारे,

प्रेम प्यार से उससे मिलना।

जो जो भी हो जैसा भी हो,

आदर -सत्कार से उसे खिलाना।

घर पर सब के खाना है,

लोग तुम्हारे प्यार की खातिर।

तुमसे मिलने आते हैं।

मान -इज्जत तुम दे दो सबको,

यहीं तो बस चाहते हैं।

गृहस्थी का यही नियम है,

गृहस्थ जीवन बड़ा कठिन है।

कदम कदम पर इम्तहान यहांँ है।

जानवर भी तुमसे पलते,

ऋषि मुनि ने सत्य कहा है।

गृहस्थ जीवन जीने का आधार।

दोनों होते इसके सूत्रधार,

जिंदगी चले न एक दूजे के बिना

दोनों है इसकी पतवार।।

                  रचनाकार ✍️

                  मधु अरोरा