रीढ़ की हड्डी हो या हो दिल की धड़कन,
हो जवाब सब सवालों का, यौवन हो या बचपन.
हाथ का खाना, हर पल प्यार जताना,
हरती हो चिंता सबकी, आता है बस तुम्हे सिर्फ मुस्कराना.
मेरी ढाल हो, अँधेरे को चीरती मशाल हो,
हरदम हो शांत नदी सी, ख़ामोशी में भी सुनहरी ताल हो.
हर मर्ज की दवा है तुम्हारे पास
हर कदम बढाती हूँ, लिए तुम्हरा अडिग विश्वास.
लेना है किसी के लिए कोई तोहफा, या डालना है सब्जी में कितना तेल,
करी सभी खावाशियें पूरी मेरी, हो वो वाजिब या थोड़ी बेमेल.
न फबते माथे पर तुम्हारे सिलवटों के हैं रंग,
देखे होंगे तुमने जीवन के कई अतरंगी ढंग.
करती हो सबका हौंसला बड़ा,
गर हो कोई भी सामने अवसर खड़ा.
न देखती हो कभी दिन हो या रात,
तत्पर रहते है सबकी सलामती में तुम्हारे हाथ.
जीवन में उठते तूफानों को करवाती हो तुम पार,
सर्वोच्च तुम मेरे लिए हो माँ, हो मेरे जीवन का संपूर्ण सार
नेहा शर्मा,
नॉएडा