एक वक्त का खाना
जैसे तैसे जुटाकर
दूसरे वक्त की चिंता जिस इंसान के
दिमाग में घर कर जाती है,
उसके दिमाग में
रोटी की समस्या बाकी सभी समस्याओं से
ऊपर स्थान पाती है
और दुनिया भर की तरक्की का
जमकर मुंह चिढ़ाती है।
एक बार अपनी जान
जैसे तैसे बचाकर
दूसरी बार जान बचाने की चिंता
जिस इंसान के
दिमाग में घर कर जाती है,
उसके दिमाग में अपना अस्तित्व
बचाए रखने की चिंता बाकी सभी समस्याओं से
ऊपर स्थान पाती है
और दुनिया भर की इंसानियत का
जमकर मुंह चिढ़ाती है।
जिसे चिंता न हो पेट भरने की
और न ही अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए
किसी आततायी से लड़ने की,
उसके दिमाग में जरूरी-गैरजरूरी हर बात
समस्या बनकर कुलबुलाती है
और दुनिया भर के भूखों व शोषित लोगों का
जमकर मुंह चिढ़ाती हैं।
जितेन्द्र 'कबीर'