कवि जीवन परिचय

 

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


कैलाश पति के शुभ आशीष से एक बालक आया श्री कैलाश के घर ।

माता महाविद्या के चीर साधना का उनके गोद मे डाला फल।।


सन छियत्तर   और  बिसवीं  सदी आश्विन शुक्लपक्ष की वो नवमी तिथि ।

शारदीय नवरात्री  की थी  चहलपहल माँ के   गोदी में आये    नन्हा   कमल ।।


गोद भरी माता का और  हटा निपुत्र का दाग ।

अरिजन परिजन कुटुंब संबंधी सबमें जागा हर्ष उल्लास।। 


समय पंख ले उड़ता चला और मिला अपनो का साथ ।

आंगन के चार दिवारी से अब कमलेश  जुड़ा समाज से साथ।


धूल भरी वो  गालियाँ और रहा वो पीपल छांव ।

बचपन के वो खेल खिलौने सुंदर बीता समय महान।।


शिक्षा की चाहत में दूर हुआ अब जन्म स्थान ।

सूंदर सपने आसमान के देखने छोड़ा जन्म स्थान।।


कालचक्र का दंश लगा फिर छुटा माता के आंचल का साथ।

वर्ष छियानबे  तीस मई की काली और वो श्याह रात।


मन टूटा और विश्वास भी टूटा और  लगा गहरा आघात ।

टूट टूट कर बिखर गया अब मन मे जोड़े जो सुंदर ख्वाब।।


पिता के दिये उस  ढाढस से मन मे जागा सोया विश्वाश।

कुछ अपने के सहयोग मात्र से पूरा किया शिक्षा शास्त्र ।।


वर्ष निन्यानबे  और चौबीस फरबरी 

जीवन में आई एक नई सौगात।

परिणय के बंधन में बंधकर जीवन बढ़ा एक नई राह ।।


भावना के उस भाव भवर में और मिला भावना का साथ

बंधन के इस युगल युग्म से आश बंधी फिर अपना खास।।


दो पुष्प खिले अपनी बगिया में कोमल और प्रिंस  का रूप।

चहक महक  और  चहल पहल से पुलकित हुआ बगिया का रूप।।


कुछ सुख और दुख की अनुभूति मिलती रही समय के साथ ।

समय बढ़ा फिर आगे को दिन कट रहे थे अच्छे खास।।


फिर आई वो काली घड़ी  लील लिया पिता का  प्यार।

एक बार फिर छाया छीना पिता का फिर सर से हाथ।।


अब अनाथ हूँ और अकेला इस जीवन का झेलने दर्द।

पिता याद में अश्रु बून्द और माता याद मे हृदय का दर्द।।


सुनते हैं यह लोक परंपरा जिसको झेलना  हर मानव को मात्र।

मात-पिता का छाया छीनकर मन व्याकुल तो होता आप।


अब जीवन के इस वसंत पर निभा रहा अपना कर्त्तव्य।

घर परिवार और समाज की गाड़ी  खींचकर निभा रहा अपना कर्त्तव्य।।


प्रभु से बस एक निवेदन  मत करबाना किसी का नुकसान।

अंतर्मन मे शक्ति देना भर पाऊँ सामाजिक नुकसान।।


पता नहीं कब तक का जीवन श्वास  और शरीर के साथ।

जब तक तन में श्वास रहे सर्वश्व न्योछावर घर परिवार और समाज के साथ।


श्री कमलेश झा

नगर पारा  भागलपुर