शराफत

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


शराफत छोड़ दी हमने, 

जब देखा नारी को, 

लज्जित होते हुए मैंने, 

जब देखा रस्तों पर, 

बाला को अपमानित होते हुए मैंने, 

तब शराफत छोड़ दी हमने। 


जब देखा दहेज के चिता पर, 

पिता की खुशियों को जलते हुए मैंने, 

जब देखा जात पात के नाम पर, 

देश में लोगों को लड़ते हुए मैंने, 

तब शराफत छोड़ दी हमने। 


जब देखा भूख से, 

बिलखते गरीबों को मैंने, 

जब देखा वृद्धाश्रम बनते हुए मैंने, 

जब देखा निश्छलों को, 

समाज में छलते हुए मैंने, 

तब शराफत छोड़ दी हमने, 


जब देखा जहां में दो चेहरे हमने, 

पीठ पीछे वार करे, 

और फूल बरसाते हैं सामने, 

जब देखा जरूरत पर प्यारे जताए, 

काम बने तो मुंह फिराए, 

निकले काम फिर न पहचाने, 

तब शराफत छोड़ दी हमने। 


जब देखा शराफत का बुर्का पहने, 

रखते ढककर कुरूपता को अपने, 

जब देखा शराफत को शराफत से, 

कुचलते हुए हमने, 

तब शराफत छोड़ दी हमने। 


स्वरचित -अनामिका मिश्रा

झारखंड, सरायकेला (जमशेदपुर)