शरीर "दिया" है और आत्मा "बाती"...विवेक "तेल" है तीनों का मिलन "दीपोत्सव" है


युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

मेरा दीपोत्सव ही अलहदा है। कबीर दिमाग में पैबस्त हो चुके हैं..जीवन का मर्म या सार जिसने समझ लिया, उसके शरीर वाला घर रौशन हो जाता है। असल में दीपोत्सव वही है जिससे व्यक्ति का विवेक जाग्रत हो जाए और विवेक की यह रोशनी उसके अंतःकरण को रौशन कर दे। यही असल दीपोत्सव है शेष धर्म और आडंबर है और सबके राम अलग-अलग हैं। मेरा मानना है राम अयोध्या नहीं लौटे थे बल्कि लोगों को इस दिन तत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी यानी आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार हुआ होगा और जब यह हुआ होगा तो ज्ञान का दिव्यमय प्रकाश फैला होगा। जब यह प्रकाश फैला होगा तो राम यानी सभी में, सभी को "एक राम" ही नजर आया होगा। यानी आडंबर से रहित, पाखंड से दूर, जातियों के बंधन से मुक्त....तभी शायद "अयोध्या" रूपी शरीर में जब "राम" लौटे होंगे यानी "ज्ञान" लौटा होगा तो पूरा शरीर जगमगा गया होगा यानी ज्ञानोदय हुआ होगा जिसे दीपोत्सव कहा गया। कबीर ने भी इसी तरह के दीपोत्सव की बात कही और कबीर का राम "रमता राम" हो गया। मेरे एक साथी ने कहा कि दीपोत्सव पर कुछ लिखिए....। कबीर के राम भेदभाव-जाति-अंडबर, पाखंड-अहंकार-द्वेष से परे राम हैं। इसी लिए रमता राम हैं ... कबीर इसी लिए कहते हैं----
सबमें रमै रमावै जोई, ताकर नाम राम अस होई ।
घाट - घाट राम बसत हैं भाई, बिना ज्ञान नहीं देत दिखाई।
आतम ज्ञान जाहि घट होई, आतम राम को चीन्है सोई।
कस्तूरी कुण्डल बसै , मृग ढूंढ़े वन माहि।
ऐसे घट - घट राम हैं, दुनिया खोजत नाहिं ।
राम शब्द भक्त और भगवान में एकता का बोध कराता है। जीव को प्रत्येक वक्त यह एहसास होता है कि राम मेरे बाहर एवं भीतर साथ - साथ हैं, केवल उनको पहचाननें की आवश्यकता है। मन इसको सोच कर कितना प्रफुल्लित हो जाता है। इस नाम से सर्वात्मा का अनुभव होता है। "र " का अर्थ है अग्नि, प्रकाश, तेज, प्रेम, गीत । रम (भ्वा आ रमते) राम (रम कर्त्री घन ण) सुहावना, आनन्दप्रद, हर्षदायक, प्रिय, सुन्दर, मनोहर। दरअसल यही असल दीपोत्सव है शेष सब व्यापार है। कबीर साहेब राम के सम्बन्ध में भेद कहते है:-
.
चार राम हैं जगत में,तीन राम व्यवहार ।
चौथ राम सो सार है, ताका करो विचार ॥
एक राम दसरथ घर डोलै, एक राम घट-घट में बोलै ।
एक राम का सकल पसारा, एक राम हैं सबसे न्यारा ॥
सकार राम दसरथ घर डोलें, निराकार घट-घट में बोलै ।
बिंदराम का सकल पसारा, अकः राम हैं सबसे न्यारा ॥
ओउम राम निरंजन रारा, निरालम्ब राम सो न्यारा ।
सगुन राम विष्णु जग आया, दसरथ के पुत्र कहाया ॥
निर्गुण राम निरंजन राया, जिन वह सकल श्रृष्टि उपजाया ।
निगुण सगुन दोउ से न्यारा, कहैं कबीर सो राम हमारा ॥
सगुण राम और निर्गुण रामा, इनके पार सोई मम नामा ।
सोई नाम सुख जीवन दाता, मै सबसों कहता यह बाता ॥
ताहि नाम को चिन्नहु भाई, जासो आवा गमन मिटाई ।
पिंड ब्रह्माण्ड में आतम राम, तासु परें परमातम नाम ॥
कबीर एक साखी में कहते हैं--------
आतम चिन्ह परमातम चीन्है, संत कहावै सोई ।
यहै भेद काय से न्यारा, जानै बिरला कोई ॥
कबीर साहेब अपनें राम के लिए कहते हैं :-
जीव शीव सब प्रगटे, वै ठाकुर सब दास ।
कबीर और जाने नहीं, एक राम नाम की आश ॥
सुमिरन करहु राम की, काल गहे हैं केश ।
न जाने कब मारिहैं, क्या घर क्या परदेश ॥
एक राम नाम के संज्ञा के कारण उत्पन्न भ्रम भेद पर कबीर साहेब स्पष्ट कहते हैं । :-
झगड़ा एक बड़ो राजाराम । जो निरुवारै सो निर्वान ॥
ब्रम्ह बड़ा कि जहाँ से आया । वेद बड़ा कि जिन निरामया ॥
ई मन बड़ा कि जेहि मन मान । राम बड़ा कि रामहिजान ॥
भ्रमि- भ्रमि कबीरे फिरै उदास । तीर्थ बड़ा कि तीर्थ के दास ॥
मेरा दीपोत्सव दरअसल कबीर के विचारों का दीपोत्सव है। शेष आप सभी को मौजूदा दीपोत्सव की शुभकामनाएं

पवन सिंह