बदलती तारीख

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

बदलती तारीख से साल बदल जाते हैं

यहां न जाने कितने सवाल बदल जाते हैं

जिस साल में करते शिद्दत से काम सभी 

वही साल हमें छोड़कर पीछे चले जाते हैं 

पीछे मुड़कर देखते जब बीता हुआ कल

कितने अफसानों से भरे हुए वो गुजरे पल

गम की गहराई में वे हमको डुबो जाते हैं

अहसासों की दुनिया में हम सिमट जाते हैं

अनवरत चलता समय भला कब रुकता है

सरिता की तरह बस आगे बहता रहता है 

इसकी रफ्तार को कोई नहीं पकड़ पाते हैं 

इसके फंदे में राजा रंक सब फंस जाते हैं 

यादें रह जाती हैं बीते हुए पल के साथ

छोड़ जाते कितने निशान अपने जज्बात 

यूं तो समय के साथ कदमताल मिलाते हैं 

बदलती तारीख में इतिहास बदल जाते हैं 


स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश