हम जिए जा रहे हैं

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


तम्मनाओं को दिल में बसाकर हम जिए जा रहे हैं,

दीदार-ए-यार की चाहत में अश्क़-ए-ग़म पिए जा रहे हैं।


कि शिद्द्त से खुद को तुझपे लुटाकर लुट गये हम,

तेरी बेरुखी को अपनी मुस्कान से सिए जा रहे हैं।


रहगुज़र में तन्हा थे और तन्हा ही रहे हम,

जाने क्यों तेरे शहर का नाम लिए जा रहे हैं।


मिली जो नज़रें तुमसे फिर न और कुछ देखा हमने,

विसाल-ए-यार की चाहत में दिन को रात किए जा रहे हैं।


इल्तिजा है मेरे जान ज़रा आकर देख तो लो हमें,

इस दिवानी को लोग तेरा ही नाम दिए जा रहे हैं।


डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )