युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
यह एक सच्चाई है,
ढलती उम्र में,
तकलीफ़ देह रूलाई है।
यहां खुशियों को बांटना,
अच्छी रित नहीं है,
सब कहते हैं कि मजबूरियां हैं,
कोई सही और सटीक,
रास्ते में चलने की,
नहीं दी जाती सीख यहां है।
हताश निराश और उदास रहने की जरूरत,
अकेलेपन की सबसे बड़ी चुनौती है,
यहां खुशियों को कभी कहीं,
बांटना नहीं आता है लोगों को,
बस कहते हैं इसे,
एक अवसादों को जन्म देने वाली,
कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त,
तकलीफ़ देने वाली नीति है।
यह उमंग और उत्साह को,
खत्म करने में मदद करता है,
सहजता से मिलकर रहने वाले लोगों को,
अपने किरदार में खो जाने के लिए,
हर सम्भव हर पल श्रम करते हुए,
नई नई रिवायतों के लिए,
अत्यधिक श्रम करते हुए,
अकेलेपन का नवीन संस्करण गढ़ता है।
यह कमजोर और पवित्र आत्मा की,
उत्कृष्ट व सटीक पहचान है,
सामाजिक दुर्भाव की एक,
उन्नत व स्वीकार्य प्रमाण है।
डॉ० अशोक,पटना, बिहार।