ग़ज़ल : उसे हर कोई जीना चाहता है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


उसे हर कोई जीना चाहता है 

जो ज़ाहिर ज़िंदगी दार-ए-फ़ना है


क़फ़स में जिस्म की हम कैद है क्यूँ

किसी अपराध की शायद सज़ा है 


किया करता है अक्सर वो ही साहिब 

जो दिल इक बार मेरा ठानता है 


बिना मैं वाज की परवाज़ हूँ वो

जिसे कहती ये दुनिया हौसला है 


नहीं है चश्म-तर क्यूँ आज शायद

मिरे अंदर कहीं कुछ मर गया है 


प्रज्ञा देवले ✍️