गजल

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


जिस बात को सुनने में, तकलीफ होती है जमाने को।

हम पर क्या गुजरी,हम तो जी रहे हैं, उस अफसाने को।।


ढूंढता है दिल कोई अपना सा, गम बताने को ।

कोई तो हो हमनवां,बाकी दुनिया तो है ही सताने को । ।


आंसू के वजह बहुत मिले, मेरे अफसाने को।

मुद्दत से दिल तरसा है, हकीकत में मुस्कुराने को।।


रिश्ते कई जुड़े हैं, हमारी खुशियों पर हक जताने को।

कोई तो हो जो तैयार रहे, दर्द में भी निभाने को।।


दिल कहता है ,तोड़ दूं वो रिश्ते जो बने हैं मुझे मिटाने को।

ख्वाब हकीकत हो ,सुकून खुद आए मुझे गले लगाने को।।


        (स्वरचित)

        सविता राज

        (मुजफ्फरपुर बिहार)