स्वार्थ सिद्धि के लिए
होती नही है मित्रता ।
भावना का बोध होना
है अपेक्षित पात्रता ।।
मित्र वो है जो कहे बिन
तोल ले हिय की व्यथा ।
दुष्कर डगर का सारथी हो
बातों को न ले अन्यथा ।।
आश्वस्त मन से मूंद आँखे
चल सके विश्वास से ।
बिन छुये पहचान ले
जो महज आभास से ।।
भावना से गा सके
एकत्व के जो गीत को ।
कठिनाइयों में बढ़ के आगे
थाम ले मनमीत को ।।
पात्र सच्चा है वही
आए जो निश्छल नेह में ।
करिए अवस्थित प्रेम से
उसको हृदय के गेह में ।।
स्वरचित -
ऋतु श्रीवास्तव
हापुड़ , उ.प्र.