मुस्कान फरेबी होंठों पर

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


इतना  तो  पता  हमें  भी है,जब चलते अपने चर्चें हैं ।

केवल शुभचिंतक खुश होते,बाकी तो सारे जलते हैं।।


             मुस्कान फरेबी होंठों पर ,

             रख ऊपर से तारीफ़ करें।

             अंदर  अंगारों  सी अग्नि ,

             बाहर से 'वाह',बारीश करें।

सब प्रसंसा के भाव मेरे, वो नफरत के संग तलते हैं।

केवल शुभचिंतक खुश होते,बाकी तो सारे जलते हैं।।


             गुस्से  से  हाथों को पीटें ,

             ताली तो एक दिखावा है।

             मुस्कां तो मन मजबूरी है,

             सच में होता पछतावा है।

हर एक सफलता पर मेरी, अपने हाथों को मलते हैं।

केवल शुभचिंतक खुश होते,बाकी तो सारे जलते हैं।।


             तरकीब हराने की हरदम,

             वो मन ही मन गढ़ते रहते।

             कंबख्त सदा कमजोरी को,

             चुपके- चुपके पढ़ते रहते ।

गुस्ताख़ी और चालाकी से वो, बड़ों- बड़ो को छलते हैं।

केवल शुभचिंतक खुश होते,बाकी तो सारे जलते हैं।।


             जितने भी सारे प्रसंसक हैं,

             मैं सबका धन्यवाद करूँ ।

             न इधर -उधर की बातों में ,

             मैं समय कभी बर्बाद करूँ।

जिनका लक्ष्य से ध्यान हटा,चाहकर भी नहीं संभलते हैं।

केवल  शुभचिंतक  खुश होते, बाकी तो सारे जलते हैं।।


नफे सिंह योगी मालड़ा ©

महेंद्रगढ़ हरियाणा