हर साल गर्मी की छुट्टियां आती हैं
संग अपने कितनी रोनकें ले कर आती हैं
मायके में जब बेटियां आती हैं
कितनी खुशियां बांट कर जाती हैं
जितना प्यार मां पापा भाई बहनों से पाती हैं
उससे कई गुना ज्यादा दुआएं दे जाती हैं
साथ में जो नन्हे से छुटकू छुटकी ले कर आती है
नाना नानी के एकाकी जीवन में नए रंग भर जाती हैं
मां को अकेली रसोई में दिक्कत ना हो कहीं
इसलिए बार बार उसका हाथ बटाने जाती हैं।
मां के हाथ की बनी चीजें खाने का इंतजार तो करती हैं
उनको सेहत ठीक रखने की हिदायतें भी देती जाती है।
थोड़ा समय सखियों संग बिताने की चाह में
पुराने गली मोहल्ले का चक्कर भी लगा आती हैं
फिर जाने कब होगा आना मां
यही सोच कर खुद तो उदास होती है
बाकी सबकी भी आंखें भर आती है।
अगली छुट्टियों में आने की चाह लिए
चार दिन खुशियां बिखेर कर भीगी आंखों से
बैग उठाकर चुपचाप वापिस चली जाती हैं।
मौलिक रचना
रीटा मक्कड़