एक बरसती साँझ

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


एक बरसती साँझ का सलोना आँचल,

नयनों में काजल,स्निग्ध सलोना बादल।


अदरक वाली चाय के साथ खुद से मेरी बात हुई,

मृदु सपनों में डूबकर याद आये प्रीतम श्यामल।


सौंधी मृदा,छम छम बूंदें, मन बावरा हुआ पागल,

रुनझुन रुनझुन ध्वनित हुआ आज मेरा छागल।


लज्जा अवगुंठन सरक रहा,हिय आह्लादित हो रहा,

खिल उठा आज मन मकरंद बनकर शतपुष्पदल।


                          रीमा सिन्हा (लखनऊ)