धूप छांव सी जिंदगी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


धूप छांव सी जिंदगी

जिंदगी मेरी धूप छांव सी लगी,

कभी सुलझी कभी उलझी पहेली लगी।


कभी खुशी कभी गम दे जाती है,

जिंदगी हर दम नए रूप दिखाती है।


चाहूं जो मैं कुछ भी करना,

कई सवाल खड़े कर जाती है।


कभी परेशानी का सबब देती,

कभी हल दे मुस्कुराती है।


भागना चाहूं कभी जिंदगी से

अगले पल खुशी का तोहफा ले आती है।


सोचती हूं मैं बैठकर हर पल

क्या जिंदगी को मैं समझ पाई?


कभी दौड़ती सी लगी जिंदगी,

उलझनो के दौर थमी लगी जिंदगी।


सच है जिंदगी धूप छांव भरी,

पता नहीं अगले पल क्या हिस्से आएगा?


जो भी तुम्हें मिला है आज धूप या छांव,

एक जाएगा तो दूजा आएगा।


छांव का तू गुमान ना करना,

धूप में तू परेशान ना होना।


दोनों तुझे सबक सिखाएंगीस

जिंदगी जीने का अनुभव बताएंगी।


         रचनाकार ✍️

         मधु अरोरा