यथार्थ की डाली से निकल ,
कोरे कागज पर छप जाती ।
मेरी रचना ही मेरी छवि,
बनकर दिलों में उभर जाती ।
खयाली लोक की गलियों में,
पढ़ी व खूब सराही जाती ।
अंतर्मन की करुण पीर भी,
हर मन को भाती व सुहाती ।
विषयों के रम्य सत्यत्व को ,
अनुपम लेखन में झलकाती ।
धुमयुक्त ज्वाला के समान ,
जगभर में सुंगध फैलाती ।
मेरी रचना ही मेरी छवि,
बनकर दिलों में उभर जाती ।
विश्वास से भरी खूबसूरत ,
उम्मीद की मयूख जगाती ।
✍️ ज्योति नव्या श्री
रामगढ़ , झारखंड