भ्रम की हवा

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

दुविधा भ्रम की हवा चल रही,

ऐसा कठिन समय आया।

रंगे सियारों के दल घूमें,

अजब रची सबने माया।।

झूठ घुला सच में ऐसे ज्यों,

दूध मिला है पानी में।

कब आ जाए नया मोड़ फिर,

किसको पता कहानी में।।

पृथ्वीराज सदा हारेंगे,

जब तक घर में भेदी हैं।

पतितों के कदमों से बोझिल,

कलुषित हवि की वेदी है।।

आसन पर अब नयन लगाए,

श्वान सभी हैं मिले हुए।

छल से सबका ध्यान खींचते,

खुद भीतर से हिले हुए।।

सच कहने वाला मूरख है,

झूठ पसारे पांव हुआ।

मनमानी पर सभी उतारू,

नहीं दिखे कोई अगुआ।।

गहराया रंग धोखे का है,

धुंधलाने जब आस लगी।

फिकर सभी को है निज हित की,

स्वार्थपिपासा आज जगी।।

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित

©® डॉ० श्वेता सिंह गौर, हरदोई, उत्तर प्रदेश