कहीं तो निहित है मुझमें ही
सृष्टि की संरचना ,
"होकर"
भी नहीं हूं कहीं
यही विडम्बना,
हूं शोषित..
लाचार नहीं,
कहती हूं बार-बार यही
कि एक नमन मुझको भी !!
मैं दुर्गा, मैं लक्ष्मी..
मैं ही हूं विद्या सरस्वती ,
फिर क्यों होती हूं संहारित
मैं "अजन्मी" भी ,
कब बदलेगी "सोच" समाज की
या..रहना होगा ऐसे ही ,
त्याग.. समर्पण..सब कर लूंगी
नहीं सहूं अपमान कभी ,
कि एक नमन मुझको भी !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश