मृत्यु

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

हार गए हम सांसों की जंग से,

और नही जान बाकी है,

दिल रोया और रूह भी रोई,

अब क्या करिश्मा बाकी है।

वक्त बेरहम और

कोई मरहम नही,

सितम पर सितम

और वो भी कम नही,

पैरों तले जमी,आसमां छीना,

अब क्या सदमा बाकी है।

लंबी सी फेहरिस्त में

किसकी बारी है,

किसका यम से बुलावा जारी है,

पांच तत्व में विलीन हो

गया शरीर है,

अब क्या कर्मा बाकी है।

बाजी शतरंज की,

खेल रचा है वो

वो खिलाड़ी है हम सब अनाड़ी हैं

एक एक कर के,प्यादे गिरा रहा

अब क्या फरमा बाकी है 

अनादि अनंत है,कैसा विधान है,

मृत्यु की शरण

सब के लिए समान है

शव से मोह का संगीत बज रहा,

अब क्या नगमा बाकी है

प्रणाली श्रीवास्तव

सहडोल मध्य प्रदेश