मानवता के लिए कल्याणकारी, स्वस्थ, वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक दृष्टि से युक्त कर्मयोग के अभ्यास में आलस्य के लिए स्थान नहीं है। परन्तु, त्याग के भाव संग मानवता की सेवा करने वालों के लिए सम्यक विश्राम भी उतना ही आवश्यक है, जितना श्रम। श्रम-युक्त कर्म जीवन का प्रकाश है जिसमे मनुष्य सरलता से विकास-यात्रा पूरी करता है। क्षेमद कर्म के सातत्य के लिए विश्राम आत्म-संगति, अभिव्यक्ति और ब्रह्मांड - ऊर्जा से संबंध जोड़ने का अनमोल अवसर है।
दिन के बाद रात्रि, जीवन अनंतर मृत्यु का क्रम इस सिद्धांत पर आधारित है कि विश्राम द्वारा, श्रम से उत्पन्न शक्ति-ह्रास की क्षतिपूर्ति के साथ थकान को दूर करके अगले दिन / जीवन यात्रा के लिए ऊर्जा संग्रहित की जाये।
अभाव, लोभ और प्रभुत्व की महत्वाकांक्षाओं के कारण कुछ व्यक्ति अनियंत्रित कामनाओं के पीछे रहते हैं,जैसे, कार्यालय के काम के बाद अतिरिक्त धन के लिए श्रम और अन्य कठिन कार्य। मानसिक,शारीरिक विश्राम के बिना दुर्बलता,दीर्घसूत्रता, विस्मरण और अन्य रोगों का आक्रमण संभव है। विश्राम के अभाव में, कार्य कौशल,कर्म से प्राप्त सहज आत्म संतोष का स्तर निम्न रहता है, उपलब्धि और आत्मानंद दूरस्थ भाव सम होते हैं।
विश्राम ह्रदय-गति, श्वसन-क्रिया,मांसपेशी- क्रिया और अन्य आवश्यक क्रियाओं ( मानसिक,शारीरिक,मनोदैहिक ) के लिए ऊर्जा देता है। ८ घंटे की निद्रा, नियमित योगाभ्यास, श्वास-निरीक्षण, आस्था,भाव अनुकूल भगवत-नाम जप, विचार निरीक्षण के माध्यम से मनोनिग्रह,आत्म-संयम की तकनीक - ये सभी विश्राम और उस के बाद की स्फूर्ति,संतुलन,प्रफुल्लता और मानव कल्याण हेतु, सदी २१ के नव-रचनात्मक चिंतन के कार्य क्षेत्र का द्वार खोलते हैं।
विश्राम की सार्थकता मानसिक तनाव से बच कर शारीरिक थकान मिटाने में है, जिसके लिए, द्वेष, क्रोध, प्रतिशोध, हिंसा, अहंकार जैसे मानसिक विकारों से दूर रहना चाहिए। एक विद्वान के अनुसार, शारीरिक,मानसिक विश्राम का मणि-कांचन
संयोग हो,ऐसा पूर्ण विश्राम स्नायुओं को स्निग्ध, मन,शरीर को निरोग और आध्यात्मिक जीवन को सहज बनाता है। परन्तु, अति विश्राम, जो आलस्य,अकर्मण्यता और तमस-भाव का परिणाम है और मानवता के भौतिक और आध्यात्मिक विकास के पथ को अवरुद्ध करता है।
@ मीरा भारती,
पुणे, महाराष्ट्र।