इस दुनिया से जा चुके
क्रांतिकारियों की मूर्तियों से
कोई खतरा नहीं होता सरकारों को,
इसलिए वो बड़े शौक से
उनकी मूर्तियां लगवाकर चौराहे पर
अपना वोट-बैंक बनाती जाती हैं,
खतरा उन्हें क्रांतिकारियों की
विचारधारा से प्रभावित होकर
अपने जायज अधिकारों के लिए
संघर्ष करने वालों से महसूस होता है
इसलिए वो ऐसे लोगों को लगातार
अराजक, उग्रवादी, राजद्रोही, देशद्रोही
बताती जाती हैं।
प्राचीन काल से आज तक
सत्ता का चरित्र रहा है ऐसा ही
कि वो अपने किसी भी तरह के विरोध को
सामर्थ्य अनुसार दबाती जाती है,
क्रांतिकारी लगते हैं उन्हें दूसरों के
राज्यों में ही अच्छे
लेकिन अपने विरोध में उठे स्वरों को
साम-दाम-दंड-भेद से
खामोशी की मौत सुलाती जाती है।
जितेन्द्र 'कबीर'