मौसम-ए-गुल में सब गुदगुदा होता है,
हासिल-ए-लक़ब ग़मज़दा होता है।
इस दौर में मतलब से याद करते हैं सभी,
क़ल्ब में कुछ और ज़ुबाँ जुदा होता है।
चेहरे में हबीब के रहते हैं रक़ीब यहाँ,
न कोई ईमान न आँखों में पर्दा होता है।
इंसानियत ज़िंदा है बस किताबों में,
सांस लेकर भी इंसान मुर्दा होता है।
रिश्ते-नाते कोई मायने नहीं रखते,
हर रिश्ते का जब सौदा होता है।
घुट रहा है हर कोई इस जहान में
दबी सिसकियां न कोई सदा होता है।
इमदाद को कोई नहीं आता रीमा,
कहने को हर कोई ख़ुदा होता है।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश