मौसम-ए-गुल

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


मौसम-ए-गुल में सब गुदगुदा होता है,

हासिल-ए-लक़ब ग़मज़दा होता है।


इस दौर में मतलब से याद करते हैं सभी,

क़ल्ब में कुछ और ज़ुबाँ जुदा होता है।


चेहरे में हबीब के रहते हैं रक़ीब यहाँ,

न कोई ईमान न आँखों में पर्दा होता है।


इंसानियत ज़िंदा है बस किताबों में,

सांस लेकर भी इंसान मुर्दा होता है।


रिश्ते-नाते कोई मायने नहीं रखते,

हर रिश्ते का जब  सौदा होता है।


घुट रहा है हर कोई इस जहान में

दबी सिसकियां न कोई सदा होता है।


इमदाद को कोई नहीं आता रीमा,

कहने को हर कोई ख़ुदा होता है।


                 रीमा सिन्हा

              लखनऊ-उत्तर प्रदेश