नमन विवेकानन्द को,
जागृति के नव छंद को।
छिटका हर जगह अँधेरा था,
पाखण्ड वाद का घेरा था।
अन्याय असद् का डेरा था
हो पाया नहीं सवेरा था।
तोड़ा तुमने हर फन्द को,
नमन विवेकानन्द को।
साधना सबल दी भारत को,
भावना प्रखर दी भारत को।
मानवता का संचार किया
बस राष्ट्वाद को प्यार किया।
दीप दिखलाया
पौरूष अमन्द को,
नमन विवेकानन्द को।
प्रातः दुपहर संध्या-रजनी,
मन में रहती भारत जननी।
जनगण का पुनरोत्थान किया,
झोपड़ियों का उत्थान किया।
मनसुमनों के
पावन मकरन्द को,
नमन विवेकानन्द को।
प्रवीणा दीक्षित
कासगंज-उत्तर प्रदेश