वो एक तितली ही तो थी,
या भी उसी की मानिन्द,
मेरे हाथों ने जो पकड़
लिया उसको,,,,,,,,
दूसरे ही पल फिर कर
दिया जुदा उसको ,,,,,,,,
डर गया छूकर के ,,,,,,
नाजुक से बदन को ,,,
मासूम वो सच ,
सरापा खुदा की कसम,,,,,
फिर भी मैं , उसको,,,
देखता ही रहा जाते ,,,
खो गई फिर वो ,,,,,,
आसमानों में ,,,,,,,
मेरे पास बस अहसास था ,
अब सोच रहा था ,,,,,,
क्या मैं सच था ? सही था,
नहीं मालूम,,,,,
उसको इस तरह छोड़ना ,,,,
खुद से खुद को तोड़ना ,,,,,,,
रह गई कसक दिल में ,,,,,,,
उड़ गई तितली , ,,,,,,,
अंधेरी रातों की ,
बन गई बिजली ,,,,,उड़ गई तितली ,
खो गई तितली,,
बन गई बिजली,,,,,,
बन गई बिजली,,,,,,,
डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह
सहज़ हरदा मध्यप्रदेश,,,,,