ऐसा गया वो मुझसे
तर्क़ ताल्लूक करके,
कभी कोई मुझसे
रिश्ता ही न रहा जैसे,
पहली नज़र ही उसकी
जिगर के पार हो गई,
सदियों उसका और
मेरासाथ रहा हो जैसे,
मुहब्बतों के सब ही
आदाब से वो ऊँचा है,
बिन बोले बहुत कुछ
वो बोल रहा हो जैसे,
जुम्बिशें थी उसकी
आंखों में ख़्वाबों सी,
उसकी नज़रों में दवा
कोई ढूंढ़ रहा हो जैसे
हिज्र की धूप में छाओं
कितनी भली लगती है,
ज़ुल्फ़ें चेहरे पे मुश्ताक़
अपनी गिरा रहा हो जैसे,
डॉ . मुश्ताक़ अहमद शाह
"सहज़ " हरदा मध्यप्रदेश