हाय हाय रे मजबूरी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

(क)

हाय हाय रे मजबूरी

हम सब से कैसी दूरी।

सरकार ध्यान ना लावे,

अरे वित्त विहीनी के दलदल में,

जीवन धंसता जाए-----

हाय हाय रे मजबूरी--

नेताओं के झूठे वादे,

कितना तुम्हें गिनाएं।।

ओट हमारा ले-ले कर,

अपने मौज उड़ाएं,।।

गिरगिट जैसा रंग बदलते नेता मन ना भाए--

हाय हाय रे मजबूरी----(1)

लोक लुभावन  वायदों से  है भाग्य हमारे फूटे।

इस नौकरी का कौन भरोसा,

आज लगे कल छूटे।।

आशा में दिन बीत रहे,मन सोच सोच घबराए----

हाय हाय रे मजबूरी---(2)

  (ख)

हिन्दी का मान बढ़ाना होगा

 आओ हिन्दी का अलख जगाएं। हिन्दी में बोलें बतियाएं।। हिन्दी के उत्थान के खातिर,  संकल्प अटल अपना दुहराएं।।हर साल सितम्बर चौदह तारीख, हिन्दी दिवस बन आती है।एक दिन बाद सहानुभूति यह वर्षों तक दब जाती है।। ऐसा करने से कुछ नहीं होगा। भाषा का भाव जगाना होगा।

 दुनियां भर की भाषा में सरस हिन्दी का मान बढ़ाना होगा।

गौरीशंकर पाण्डेय सरस