गुरु शिष्य

 

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


गुरु ज्ञान का श्रोत है, शिष्य उनके  है वाहक मात्र।

ज्ञान गंगा के घाट खड़े हम ज्ञान पिपासा की चाहत मात्र।।


गुरु गढ़े जो मूर्ति थपकी और प्यार का सराहना मात्र।

जान डाले जो ज्ञान का फिर सफल हो जाता जीवन मात्र।।


गुरु शिष्य की वह परंपरा त्रिपुरारी से होता शुरू।

बड़े बड़े और कर्मपुरुष का गाथा फिर होता शुरू।।


गुरु मिले बृहस्पति सा तो तैयार होते फिर महापुरुष ।

अगर गुरु दंभी अहंकारी फिर मिलते महा असुर ।।


अगर गुरु हो परशुराम सा फिर मिलते है भीष्म पुरूष।

अगर गुरु हो द्रोण जैसा फिर जग को मिलते पार्थ पुरुष।।


अगर गुरु हो लीलाधर तो मिल जाते अभिमन्यु का तेज।

चक्रव्यूह के छह दरवाजे तोड़ने का जिसमें हो तेज।।


गुरु शिष्य की ये पुरातन परंपरा युग युगांतर तक चलता रहे।

आने वाले कल के  इतिहास में नया नाम जुड़ता रहे।।


कल भी जब चर्चा  हो आदर सहित हो गुरु का नाम।

शिष्य एकलव्य या कर्ण हो  इतिहास लिखे फिर उनका भी नाम।।


श्री कमलेश झा

नगरपारा भागलपुर