वर्ष के अंत का भाव

पुरा कहें, संप्रति  जो  था नव वर्ष ।

छलकाया घट में, रसभर के  हर्ष।।


किस हिय  से लिख दूँ  उसका इतिहास।

बहुजन के सुख-दुख, सँग  भाव   प्रकर्ष।


प्रातः से निशि श्रम  करते ज्यों  ढोर।

'कुछ'  सुख  रासें,बहु नैनों   में   तर्ष।


राग रंग  के  पार्श्व   बेबस   निराश।

अल्प न  दुख  हो,  जब हारे संघर्ष।।


सम्यक खुशियाँ  नृत्य करें हर  द्वार।

नव उत्सव सुख, जब उर में हो मर्ष।।


मीरा भारती।