एक अलग पहचान है इंदौर की पतंगबाजी में पेंच लड़ाओ और जांबाजी दिखाओ, काटा है.…....!

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

एक अलग पहचान है इंदौर की पतंगबाजी में पेंच लड़ाओ व जांबाजी दिखाओ, काटा है वाह क्या शानदार कलाबाजी है।

पतंग उड़ानें का जुनून एक पागलपन के रूप में ऐसा होता है जब खाते-पीते, उठते-बैठते और सपनों तक में उतर जाता है। पुराने पचास-साठ साल पहले से यही रूप आज तक रचा-बसा

हैं। इंदौरियों में और लगता है कि इंदौरवासी अपने इस शौक को

पूरी लगन से जीते हैं और पतंग उड़ाने का भरपूर आनंद लेते हैं।

उनके सामने कोई भी ऐसा मुद्दा हो पूरी शिद्दत से पूरा करने जुट जाते हैं।

एक अलग पहचान है इंदौर की पतंगबाजी में वैसे आज भी हैं

अब उन्नत हैं आधुनिक हैं महानगरी सभ्यता के साथ यह कहेंगे

एक अलग माहौल था इंदौर पुराने समय में छोटा-सा शहर था। अधिकतर कच्चे, कवेलु, चद्दर की छत वाले पतरे के टापरे वाले, तीन-चार मंजिल वाले मकान होते थे। बाड़े, नौरे, गलियारे, गुवाड़ीयां होती थी। छोटी गलियां, चौक, औटले होते थे। खाली पड़े बाग-बगीचों, बंद स्कूलों के चौगान होते थे। फिर सड़कों पर बिजली के खंबों पर और मकानों की पीछे की गलियों में पतंगबाजी की कलाबाजियां होती थी। बहुत कुछ पक्के मकानों व बिल्डिंगों में भी जान-पहचान से तीर तुक्के मारकर पतंगबाजी के लिए जगह बना लेते थे।

तब बाजार से ताव-कीमची लाकर घर पर ही पतंग बना लेते थे, खुद भी उड़ा लेते थे व बेचते थे। पतंग की बड़ी-बड़ी दुकानों पर रंग-बिरंगी छोटी-बड़ी पतंगों के साथ मांजा भी बिकता था। उस वक्त सब देशी था। बड़े उचके-चकरी में रंगे हुए मंजे हुए धागे रहते थे। इंदौर में कबूतर खाना, छत्रीबाग, माहेश्वरी स्कूल-वैष्णव स्कूल राजमोहल्ला, मल्हाराश्रम, चिमनबाग, जीपीओ यहां तक की हर छोटे-बड़े मैदान में सुबह-दोपहर-शाम आकाश में पतंगबाजी की रेलमपेल होती और की लोग टापरों-छतों से गिरकर, पतंगबाजी में झगड़ भी लेते थे व हाथ-पैर भी तुड़वा लेते थे। मुकेरीपुरा, बजाज खाना, रानीपुरा, मल्हारगंज, बड़ा गणपति, इतवारिया, मील एरिया व अनेक गली मोहल्लों में पतंगों की दुकानें होती थी, अब सारे शहर में बिकती हैं।

आकाश में इधर-उधर जहां देखो वहां पतंगों से भरा आसमान

होता था। ये आ रही, वो जा रही, किसी ने झपटकर, पीछा करके काटा हैं की जोरदार आवाज आती हैं, ऐसी पतंगबाजी होती हैं, कोई लपक रही हैं और कोई चंगुल से बचकर भाग रही है। किसी की उड़ गई, किसी की कट गई, कटी हुई लुट गई, किसी ने पतंग से पतंग हिलगा ली और अपने पास बुला ली।

कटी पतंग लूटने का मजा अभूतपूर्व होता हैं जैसे कोई किला

जीतकर आ रहा हो। पेंच लड़ाकर आसपास की पतंगों से आसमान साफ करना कोई युद्ध जीतने से कम नहीं होता।

बैंगन छठ व मकर संक्रांति कोई बड़े पतंग महोत्सव से कम नहीं होती। इंदौर में बनी पतंगे व पतंगबाजी देश भर में मशहूर हैं।

रंग-बिरंगी पतंगें व मांजा अब चाईनीज भी बाजार में बिक रहे हैं।

चाईनीज मांजा से हाथ-पैर कट जाते हैं। पतंगों की किस्में भी अनेक प्रकार की प्लेन, ढग्गा, कानबाज, परियल, दो-तीन कलर, रंग-बिरंगी, चांदबाज, लंबी लहरियां, चौकड़ी, लंबी पूंछ सबका मन मोह लेने वाली। यही वजह हैं कि पतंग उड़ानें का पागलपन भी इंदौरियों का जुनून बन गया है। पतंगबाजी में उचके-चकरी पकड़ने और पतंग उड़ानें का जोश देखते ही बनता हैं पतंगबाजों व उनके शागिर्दों के बीच।


                              - मदन वर्मा " माणिक "

                                इंदौर, मध्यप्रदेश