आत्मसम्मान

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


लोगों की परवाह में मैंने गंवाया समय अपना।

लोग क्या कहेंगे सोच कर, छोड़ दिया अपना सपना ।


आज रह रह कर मन में एक टीस उठती है।

कहां गए वो लोग निगाहें हर तरफ ढूंढती है।


आज मेरा अंतर्मन भी मुझे ही धिक्कारता है।

अपने ही अंदर वो अपना अस्तित्व तलाशता है।


पर अफ़सोस अस्तित्व तो बड़ी दूर की बात है।

अब ये चेहरा भी ना कोई यहां पहचानता है ।


सच कहूं, दोगलेपन के इस भयावह सैलाब में।

ना जानें कहां  मेरा आत्मसम्मान लापता है।


एक बात कहूं सबसे बहुत एकाग्र होकर सुनना।

ईश्वर को छोड़कर किसी पर भी भरोसा ना करना।


इस परिस्थिति का हिस्सा तुम भी ना खुद को बनाना।

बिना लोगों की परवाह किए अपनी पहचान बनाना ।


ये लोग बदल जायेंगे वक्त के साथ इतना ध्यान रखना ।

फिर बाद में मत कहना मैंने इन्हें वक्त रहते नहीं पहचाना।


मैंने क्या  खोया अपने जीवन में आज तुम्हें बतलाती हूं।

अपने आत्मसम्मान के रक्षा का पाठ तुम्हें सिखलाती हूं।


काजल मिश्रा " कृति "

गोंडा ( उत्तर प्रदेश )