दोहों में स्वामी विवेकानंद

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


प्रखर रूप मन भा रहा,दिव्य और अभिराम।

स्वामी जी तुम हो सदा,लिए विविध आयाम।।


स्वामी जी तुम चेतना,थे विवेक-अवतार।

अंधकार का तुम सदा,करते थे संहार।।


जीवन का तुम सार थे,दिनकर का थे रूप।

बिखराई नव रोशनी,दी मानव को  धूप।।


सत्य,न्याय,सद्कर्म थे,तेज अपरिमित माप।

काम,क्रोध,मद,लोभ हर,धोया सब संताप।।


गुरुवर तुमने विश्व को,दिया ज्ञान का नूर।

तेज अपरिमित संग था,शील भरा भरपूर।।


त्याग,प्रेम,अनुराग था,धैर्य,सरलता संग।

खिले संत तुमसे सदा,नवजीवन के रंग।।


था सामाजिक जागरण, सरोकार,अनुबंध।

नित्य,सतत् आती रही,कर्मठता की गंध।।


सुर,लय थे,तुम ताल हो,बने धर्म की तान।

गुरुवर तुम तो शिष्य का,हो नित ही यशगान।।


मधुर नेह थे,प्रीति थे,अंतर के थे भाव।

गुरुवर तुमसे धर्म को,सौंपा पावन ताव।।


वंदन,अभिनंदन करूँ,थे गुरुवर तुम नित्य।

थे तुम खिलती चाँदनी,दमके बन आदित्य।।

                      

-प्रो0(डॉ0)शरद नारायण खरे

प्राचार्य

 शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय

मंडला,मप्र-481661

 (मो.9425484382)