मुक्तक , आत्मज्ञानी विवेक

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

प्रशिष्य रामकृष्ण के स्वदेश को सँवारते।

 विवेक आत्मज्ञान में विमुक्ति देश मानते।

सभी झुकें सभी नमें अवाम सुश्रुषा करें-

दयालु वेदना भरें  सु-काज  ज्ञान  बाँटते।

धरें विवेक बाल पाणि, भोज्य जो उन्हें मिला।

मिटे  क्षुधा अपत्य की विरक्त का हिया  खिला।

करें सवाल वृद्घ  माँ   'निचोड़ती   छुधा  तु-म्हें-'

सुखी निवेद्य  वत्स पेट प्रीति  में  न है   गिला।

मीरा भारती।