पीठ दिखती नहीं हमें
जिसके पीछे छिपके
करते हैं दुष्कर्म जान के
और फिर मुंह से निकलते हैं
सुभाषित संदेश
गूंजे का लाल रंग
भूल जाता है अपने नीचे
काले रंग को
जिस तरह दिया तले
होता है अंधेरा
गलत को नहीं छोड़ेंगे
बुराई का मुंह तोड़ेंगे
भले ही हमें अतिक्रमण
करना पड़े सीमा का
भ्रष्टाचारियों का गर्दन
कानूनन मरोड़ेंगे
दंगाइयों ने किलकारी मारी
भ्रष्टाचारियों ने तालियां बजाईं
दुष्कर्मी वन्स मोर चिल्लाए
गूंजे का लाल रंग
दिए की रोशनी
मुस्कुराते मंच से उतरे
काला रंग गूंजे का
दिया तले अंधेरा
न दिखने वाली पीठ
याद नहीं आए किसी को भी
डॉ0 टी0 महादेव राव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)
9394290204