ख़ामोश रहते रहते।

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

यह ज़िन्दगी की रफ्तार,

धीमी कर जाती है।

आगे बढ़ने में मदद नहीं करता,

हौसला बढ़ाने की परम्परा,

यहां कम हो जाती है।

सब्र करना जरूरी है,

रिश्ते निभाने के लिए,

एक खूबसूरत दस्तूर है।

नाराज़गी की बजह जानकर,

इसके लिए हालातों में,

सोचने समझने की कोशिश,

आज़ की दुनिया में,

बन गया नासूर है।

रूठने वाले अक्सर फ़िराक़ में रहते हैं,

मान अपमान पर,

खिदमत और इज्ज़त देकर,

ऊंचे आसमान पर पहुंचाने के लिए,

हर वक्त मजबूती से आगे बढ़ने के लिए,

लगातार कोशिश करते हुए,

चलते फिरते नज़र आते हैं।

कभी लगता है कि खामोश रहते रहते,

ज़िन्दगी में आईं हुईं खुशियां,

न आकर यहां खत्म न हो जाए।

तकलीफ़ देने वाली बजह न,

घर आंगन में समा जाएं।

यही जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश है,

आईने में देखा जा रहा है,

कैसे हो सकता है ज़िन्दगी में,

आगे बढ़ने की आजमाइश है।

डॉ ०अशोक, पटना, बिहार।