मेरे शब्दों से रहते अनजान

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


मैं तुम्हारे मौन को भी पढ़ लेती हूँ,

मेरे शब्दों से भी तुम रहते अनजान।

तुम्हारे रुके अश्कों को भी समझती हूँ,

मेरे बहते आसुओं का नहीं तुमको भान।


पता नहीं क्यों लगता है मुझको,

कि प्यार मेरा एकतरफा है,

मेरी बेचैनियों के आलम तुम हो,

तुम्हारे दिल में हर कोई बसता है।


नहीं चाहती ज़्यादा कुछ तुमसे,

सुकूँ के कुछ पल माँगती हूँ।

मखमली सेज की चाहत नहीं,

तुम्हारी बाहों वाला कल माँगती हूँ।


अगर हद से ज़्यादा चाहना गुनाह है,

तो तुम भी यह गुनाह कर लो ना,

जितना याद तुम आते हो मुझको,

वैसे ही अपनी यादों में भर लो ना।


     डॉ. रीमा सिन्हा

        लखनऊ