युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
खुश हूँ आज बहुत पुरानी यादें बेच आयी हूँ,
फेंककर दुःख की गठरी,खुशियां सहेज आयी हूँ।
वो दुःख के धागे जो शायद मैंने खुद ही बुने थे,
छोड़ मखमली राहों को कंटक मैंने ही चुने थे।
उन बेज़ार उलझे धागों को मैं लपेट आयी हूँ,
पुरानी यादें बेच आयी हूँ...
बन अक्षत रोम रोम अब हुआ है पुलकित,
सुरभित तन मेरा,मन बावरा हुआ है स्निग्ध।
सोच समझ पग धरती हूँ,नहीं रही अनजान पथिक,
देख लिया दुनियां पूरी,धृष्टता करती नहीं चकित।
पहचान कर लिया रंगों की,मैं वो रंगरेज आयी हूँ,
पुरानी यादें बेच आयी हूँ...
आज भी मृदु मन में सुंदर सपने रहे हैं पल,
सपने होंगे अवश्य सकल, यह है दृढ़ अचल।
हाँ, अब उन सपनों का स्तम्भ मैं स्वयं बनूँगी,
नहीं सुनना किसी की,छली-कपटियों से दूर रहूँगी।
जंग लगे दरवाज़े खुल जायें,मैं वो पेंच लायी हूँ,
पुरानी यादें बेच आयी हूँ...
डॉ. रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश