भाषा हिय के भाव को, देती अभिनव रूप।
कीर्तन करती चेतना, अंतस खिलती धूप।।
हिन्दी जीवन ज्योति है , रचना का आधार।
तुलसी ने मानस रचा,दिया भक्ति संसार।।
हिन्दी बिन सूना लगे, मन मन्दिर का द्वार।
व्यक्त न होती भावना,मिटे न हिय का क्षार।।
पुष्पित उपवन हिन्द का, हिन्दी के ही साथ।
शोभित होती कामिनी,ज्यों बिन्दी हो माथ।।
रंगोली के रंग सा, हिन्दी का संसार।
कण कण में ऊर्जा भरे, गाये गीत मल्हार।।
मिश्री सी मीठी लगे,हरि का मधुर प्रसाद।
जनजीवन का नीर बन ,धुलती है अवसाद।।
हिन्दी कहती है प्रिये, मैं हूँ प्राणाधार।
कह दे निज मन की व्यथा,मुस्काये संसार।।
भाषा है संजीवनी, भरती हिय के घाव।
खुशियों की थिरकन लगे,जैसे कोमल पाँव।।
भाषा बिन भ्रम में रहें,उलझन न हो शान्त।
कहती कोई बात भी,मन नहिं होता क्लांत।।
✍️सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर