प्रचंड वेग झंझा की साहस से तुम मोड़ लाओ,
प्रलय तम के तांडव को देख-देख न घबराओ।
हो आँधी कितनी भी तेज आशा की लौ जलाये रखो,
मंज़िल मिलेगी तुमको राही हिम्मत को अपनाये रखो।
अनगिनत पंखुड़ियों के मध्य मधुप पी लेता मकरंद,
लौ हिम्मत की जिसने जलाई जीता है वो स्वच्छंद।
क्यों बनो तुम शलभ?क्यों बनो तुम चातक?
परिस्थितियों का करो सामना तुम फौलादी जातक।
चिटक उठती है बुझी चिंगारी मारुत के वेग से
सुसुप्त है क्यों हृदय तुम्हारा भावों के आवेग से?
तुम्हारी लघुता हीआज तुम्हें धिक्कार रही,
असीमित के सीमांत तक जाने को पुकार रही।
है इतिहास स्वर्णिम हमारा,भगत सिंह का जयकारा,
शहीदों की नस्लें हैं हम,हमसे है हिंदुस्तान हमारा।
देश की रक्षा की ख़ातिर कृपाण उठाये रखो,
तुम हो आदि और अनन्त,आशा की लौ जलाये रखो।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश