तू चल अपनी राह में,
ढूंढ मत छाया ठौर।
भरोसा रख खुद पर,
बढ़ा एक कदम और।।
चाहे पैरों में छाले पड़े,
मुंह सूख जाए प्यास से।
तुम्हें मिलेगी ही मंजिल,
तू चल इस विश्वास से।।
मिलेंगे तुझको कई राही,
कुछ थके हारे बैठे हुए।
देखकर पंथ ना भटकना,
चलना, चलो कहते हुए।।
कभी प्रेम जाल फैलेगा,
आएगा विकट बाधाएं।
जब तुम्हारी हंसी उड़ेगी,
रखना हौसला,आशाएं।।
जिस दिन प्राप्त होगा लक्ष्य,
तुम छोड़ोगे पैरों के निशान।
तुम्हारे ही पंथ में चलेंगे जन,
बनोगे विश्व विजेता महान।।
कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़।