बहार क्या करूँ

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


खिज़ा ही ठीक है बहार क्या करूँ,

तू बेवफा है तुझ से प्यार क्या करूँ।


दिल सबको देता है तू खैरात में,

इस दिल का उपहार क्या करूँ।


क़ल्ब में बस गया तू मख़सूस बन,

अब इन लबों का इनकार क्या करूँ।


लम्हें गुज़र रहे हैं सोगवार मेरे,

चश्म में छुपे पल यादगार क्या करूँ।


पल पल बदलता है तू रंगत अपनी,

तेरे प्यार पर ऐतबार क्या करूँ।


सुकून छीन लिया तेरी बेवफाई ने,

बता अब छुट्टी का इतवार क्या करूँ।


शब-ओ-रोज़ तेरी यादों में रहती है रीमा,

लाइलाज मर्ज़ का  ख़ुमार क्या करूँ।


            रीमा सिन्हा (लखनऊ)