पसर गया सर्वत्र जहां,घृणा,द्बेष,क्लेश
हे भोलेभंडारी,त्रिपुरारी ,हे जगत पिता
ब्रह्मा,विष्णु,महेश,ब्रह्मा,विष्णु,महेश--2
तरस गये नयनअब,देखने को उजियारा
मानव-ही-मानव का,कैसे हुआ हत्यारा
जार-बेजार से कलप रही,अब मानवता
दंड मिले दोषियों को ,कैसे किया प्रवेश
हे भोले भंडारी,त्रिपुरारी,हे जगत पिता.....….
रहा नहीं अब नाता,जगत का सांच से
पिघलने लगी सच्चाई,झूठ के आंच से
लोभ-लालच के फंदे में,फंसाअब धर्म
बोकर बीज कलह का, कर रहे कुकर्म
बाकी नहीं अब,कुछ कहने को विशेष
हे भोले भंडारी,त्रिपुरारी,हे जगत पिता....….
बहती थी जहां ,कभी स्नेह भरी नदियां
पेड़- पौधों से समृद्ध ,हरी भरी वादियां
नहीं अघाते थे,कहते सोने की चिड़िया
बेच रहा किश्तों में,आया कैसा भेड़िया
कंगाली के कगार पर ,खड़ाअपना देश
हे भोले भंडारी,त्रिपुरारी,हे जगत पिता........
पसर गया सर्वत्र जहां, घृणा द्बेष क्लेश
हे भोले भंडारी त्रिपुरारी हे जगत पिता
ब्रह्मा,विष्ण,महेश,ब्रह्मा,विष्ण, महेश--2
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राजेन्द्र कुमार सिंह
ईमेल: rajendrakumarsingh4@gmail.com