इश्क में वो कितनी मजबूर थी।
सर पर लिए ना जाने कितने कलंक
इश्क में जो डूबी थी।
जानती थी पत्नी कभी नही बनेगी
दूसरी पत्नी का दर्जा भी नही पायेगी।
रखैल, कलंकिनी, कुलटा
न जाने कितने तानों से
वो सराबोर थी।
पर इश्क में डूबी थी।
मीलों चली इश्क की खातिर
दरबार में भी नाची थी
भिजवायी भी गई वेश्यालय
हर तकलीफ को सह रही थी।
इश्क में दीवानी थी,
अपनों से हुई बेगानी थी।
नफरत घृणा ही,
चहुँओर से उसके हिस्से में आई थी।
सम्मान कभी न पाया जीवन में
तन्हाई ही उसकी साथी थी।
इश्क में आकंठ डूबी वो
बेबस विरहिणी थी।
इश्क में जो जी गई,
इश्क में जो मर गई थी।
वो दीवानी'मस्तानी' थी।
बाजीराव संग प्राण जो तज गई,
वो दीवानी मस्तानी थी।
गरिमा राकेश 'गर्विता'
कोटा राजस्थान