ग़ज़ल : भीड़ लगती एक सौदाई किसे आवाज़ दूँ

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


भीड़ लगती एक सौदाई किसे आवाज़ दूँ

मारती है मुझको तन्हाई किसे आवाज़ दूँ


कौन आएगा पराए आँसूओं को पोछने

छोड़ जब अपने गए भाई किसे आवाज़ दूँ


क्या कहूँ अपनों को मैं जब मेरा दिल मेरा नहीं

हो गया मुझसे वो हरजाई किसे आवाज़ दूँ


इश्क़ ने मुझको किया है इस तरह बर्बाद की

हो गई है मेरी रुसवाई किसे आवाज़ दूँ


वो रहा मेरा न मैं भी औरों का ही बन सका

जब न कोई है शनासाई किसे आवाज़ दूँ


प्रज्ञा देवले✍️